विवाह पंचमी : ''दिव्य वैवाहिक सिद्धि दिवस'' श्रीराम-सीता के विवाह का दिन, लेकिन इस दिन...


...क्यों नहीं करते विवाह ?
(धर्म नगरी / 
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मार्गशीर्ष या अगहन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था। इसलिए इस तिथि को धार्मिक दृष्टि से अति विशेष माना जाता है। सुखद वैवाहिक जीवन की कामना में विवाहित लोग इस दिन विशेष पूजा का आयोजन भी करते हैं। इस दिन श्रीराम और सीता की पूजा-आराधना करने से शुभ फलों की भी प्राप्त होते  है। 

त्रेतायुग में 
इसी तिथि को प्रभु श्रीराम का विवाह जनकनंदिनी से हुआ, जब भगवान राम ने जब मिथिला में शिव धनुष को तोड़ा और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाली। उसके बाद अयोध्या से वर यात्रा (बारात) आई और हर्षोल्लास के साथ दोनों का विवाह हुआ। 

हिन्दू धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में अनेक विवाह का सुंदर चित्रण है। कदाचित भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बाद श्रीराम और देवी सीता का विवाह सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है, क्योंकि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी न किसी रूप में उपस्थित थे। कोई भी इस विवाह को देखने का अवसर नहीं छोड़ना चाहते थे। श्रीराम सहित ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था। 

कहते हैं, प्रभु श्रीराम-सीता का विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए थे। राजा जनक की सभा में शिवजी का धनुष तोड़ने के बाद श्री राम का विवाह का रोचक वर्णन आपको वाल्मीकि रामायण में मिलेगा। विवाह के समय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र उपस्थित थे। दूसरी ओर सभी देवी और देवता भी विभिन्न वेश में उपस्थित थे। चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ।

वैदिक परंपराओं के अनुसार भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र विवाह हुआ, इसलिए इस तिथि को ''दिव्य वैवाहिक सिद्धि दिवस'' भी कहा जाता है। इस दिन श्रीराम-माता सीता का पूजा करना पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह दिन शुभ योगों से परिपूर्ण है, जो दांपत्य सुख और परिवार में समृद्धि लाने वाला माना जाता है
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शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि में विवाह संस्कार, वैवाहिक पूजन या दांपत्य सुख से जुड़े संकल्प लेना अत्यंत शुभ माना गया है। सनातन पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 24 नवंबर को रात 9:22 बजे आरंभ होकर 25 नवंबर को रात: 10:56 बजे तक रहेगी। 

ज्योतिर्विदों के अनुसार, इस बार विवाह पंचमी के दिन (मंगलवार) ध्रुव-योग, सर्वार्थ सिद्धि-योग और शिववास योग जैसे अति शुभ योग बन रहे हैं, जो पूजा, मंत्र और धार्मिक क्रियाओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी माने जाते हैं। इन योगों के प्रभाव से इस दिन किए गए धार्मिक कार्य और व्रत अधिक फलदायक होते हैं और नए जीवन की शुरुआत के लिए शुभ संकेत प्रदान करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर, विशेषकर अयोध्या में श्रीराम-जानकी के विवाह की झांकी निकाली जाती है, भजन-कीर्तन और मंगल गीत गायन किया जाता है। साथ ही विवाह की रस्में निभाई जाती हैं।

विवाह पंचमी पूजन विधि
विवाह पंचमी के दिन स्वच्छ स्नान कर स्वेच्छा वस्त्र पहनें। घर के मंदिर में अथवा पूर्व दिशा की ओर मुख करके श्रीराम–सीता का चित्र या विग्रह स्थापित करें। फिर, पीले व लाल पुष्प, तुलसी पत्र, दीपक और फल अर्पित करें। इसके बाद, श्री सीताराम विवाह कथा का पाठ करे और मंत्र है- ''जय सियावर रामचन्द्र की जय, सीताराम चरण रति मोहि अनुदिन हो''। रात्रि में श्रीराम विवाह की आरती करें और भक्ति भाव से विवाहोत्सव मनाएं।

इस दिन पर क्यों नहीं करते विवाह ?
माना जाता है, विवाह पंचमी के दिन विवाह नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगवान श्रीराम और माता सीता का वैवाहिक जीवन कष्टों से बीता था। लोक मान्यताओं के अनुसार, जब राम और सीता जी का विवाह हुआ तो उसके कुछ समय बाद राम जी को 14 साल का वनवास हो गया। राम, सीता और लक्ष्मण 14 साल तक वन में रहे। सीता हरण से रावण वध की पटकथा लिख गई। सीता जी को अशोक वाटिका में रावण के अत्याचार सहन करने पड़े। जब रामजी राजा बने, तो उसके बाद सीताजी को वियोग सहन करना पड़ा। वो वन में रहीं, जहां लव और कुश पैदा हुए। इन घटनाओं को देखकर लोग विवाह पंचमी पर विवाह नहीं करते हैं।  

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https://www.dharmnagari.com/2025/11/Ayodhya-Ram-Mandir-Dhwajarohan-25-November.html
 
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विवाह पंचमी की कथा
विवाह पंचमी की कथा भगवान शिव के धनुष से जुडी है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया, उसकी टंकार से ही बादल फट जाते, पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। इसके एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया था। इस धनुष का नाम "पिनाक" था। देवी-देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया। देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहर के स्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।

उनके इस विशालकाय धनुष को उठाने की क्षमता कोई नहीं रखता था। इस धनुष को उठाने की एक युक्ति थी। जब सीता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को उठाने की प्रतियोगिता रखी गई, तो रावण सहित बड़े-बड़े महारथी भी इस धनुष को हिला भी नहीं पाए थे। फिर प्रभु श्रीराम की बारी आई।
श्रीरामचरित मानस में एक प्रसिद्ध चौपाई है-
"उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापा।"
अर्थात, गुरु विश्वामित्र, जनक को अत्यंत निराश देखकर श्रीराम से कहते हैं- हे पुत्र राम ! उठो और 'भव सागर रूपी' इस धनुष को तोड़कर जनक की पीड़ा का हरण करो।'

इस चौपाई में एक शब्द है 'भव चापा' अर्थात् इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं, बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था। जब प्रभु श्रीराम की बारी आई, तो वे जान गए कि यह कोई साधारण धनुष नहीं, बल्कि भगवान शिव का धनुष है। इसलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया, फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा करते हुए उसे संपूर्ण सम्मान दिया।

श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेमपूर्वक उठाया। उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष स्वयं टूट गया। कहते हैं, जिस प्रकार सीता शिवजी का ध्यान कर, सहज भाव से बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए। यदि मन में श्रेष्ठ के चयन की दृढ़ इच्‍छा है, तो निश्‍चित ही ऐसा ही होगा।

सीता स्वयंवर तो केवल "माया" थी, वास्तव में सीता ने राम और राम ने सीता को पहले ही चुन लिया था। मार्गशीर्ष या अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम तथा जनकपुत्री सीता का विवाह हुआ। तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है।

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